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{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>घर हमारा जो न रोते भी तो वीरां<ref>बरबाद</ref> होता बह्रबहर<ref>समुद्र</ref> गर बह्र बहर न होता तो बयाबां<ref>उज़ाड़,रेगिस्तान</ref> होता
तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर दिल है
हुई मुद्दत के 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना, कि यों होता तो क्या होता?
</poem>
{{KKMeaning}}