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Kavita Kosh से
इन ईंटों के
ठीक बीच में पडी पड़ी
यह काली मिट्टी नहीं
राख है चूल्हे की
चूल्हे पर
खदबद पकता था
कुछ हाथ थे
जो परोसते थे।