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नया पृष्ठ: आज सिरा रहे हैं लोग<br /> दोने में धरकर अपने-अपने दिये<br /> अपने-अपने फू…
आज सिरा रहे हैं लोग<br />
दोने में धरकर अपने-अपने दिये<br />
अपने-अपने फूल<br />
और मन्नतों की पीली रोशनी में<br />
चमक रही है नदी<br />
<br />
टिमटिमाते दीपों की टेढ़ी-मेढ़ी पॉंतें<br />
सॉंवली स्लेट पर<br />
जैसे ढाई आखर हों कबीर के<br />
देख रहे हैं कॉंस के फूल<br />
खेतों की मेड़ों पर खड़े<br />
दूर से यह उत्सव<br />
<br />
चमक रहा है गॉंव<br />
जैसे नागकेसर धान से<br />
भरा हुआ हो कॉंस का कटोरा<br />
<br />
आज भूले रहें थोड़ी देर हम<br />
पॉंवों में गड़ा हुआ कॉंटा<br />
और झरते रहें चॉंदनी के फूल<br />
<br />
आज बहता रहे<br />
हमारी नींद में<br />
सपनों-सा मीठा यह जल.<br />
<br />
--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 09:46, 24 अप्रैल 2010 (UTC)
दोने में धरकर अपने-अपने दिये<br />
अपने-अपने फूल<br />
और मन्नतों की पीली रोशनी में<br />
चमक रही है नदी<br />
<br />
टिमटिमाते दीपों की टेढ़ी-मेढ़ी पॉंतें<br />
सॉंवली स्लेट पर<br />
जैसे ढाई आखर हों कबीर के<br />
देख रहे हैं कॉंस के फूल<br />
खेतों की मेड़ों पर खड़े<br />
दूर से यह उत्सव<br />
<br />
चमक रहा है गॉंव<br />
जैसे नागकेसर धान से<br />
भरा हुआ हो कॉंस का कटोरा<br />
<br />
आज भूले रहें थोड़ी देर हम<br />
पॉंवों में गड़ा हुआ कॉंटा<br />
और झरते रहें चॉंदनी के फूल<br />
<br />
आज बहता रहे<br />
हमारी नींद में<br />
सपनों-सा मीठा यह जल.<br />
<br />
--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 09:46, 24 अप्रैल 2010 (UTC)