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अन्न-1 / एकांत श्रीवास्तव

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धरती की ऊष्‍मा में पकते हैं
और कटने से बहुत पहले
पहुंच पहुँच जाते हैं चुपके से
किसान की नींद में
कि देखो हम आ गए
तुम्‍हारी तिथि और स्‍वागत की
तैयारियों को गलत ग़लत साबित करते
अन्‍न
किसान की बिटिया के हाथों
पकेंगे बटुली के खौलते जल में
और एक भूखे गॉंव गाँव की खुशी में
बदल जाएँगे
अपने दूधियापन से
जगर-मगर करते गाँव का मन।
</poem>
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