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Kavita Kosh से
धरती की ऊष्मा में पकते हैं
और कटने से बहुत पहले
किसान की नींद में
कि देखो हम आ गए
तुम्हारी तिथि और स्वागत की
तैयारियों को गलत ग़लत साबित करते
अन्न
किसान की बिटिया के हाथों
पकेंगे बटुली के खौलते जल में
और एक भूखे गॉंव गाँव की खुशी में
बदल जाएँगे
अपने दूधियापन से
जगर-मगर करते गाँव का मन।
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