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Kavita Kosh से
बच्चों ने गाना नहीं गाया
खाना खाया
और अपने ऊपर ढह गए.गए।
उनके सपने
मेरी बंद ऑंखों आँखों में आकर
इस दुनिया के बाहर जाना चाहते हैं
पर कुछ रह गया है उनका
इस तरह
मेरी बंद ऑंखों आँखों में रह गए हैं.हैं।
मैं ईश्वर नहीं हूंहूँ
ये बच्चे मेरे कारण हैं
और ये जानते हैं कि मरा नहीं हूं.हूँ।
रात ही रात है
बच्चे उठ कर मेरी ओर
आ रहे हैं लगातार
पूरे संसार में बाहर
भागता हुआ मैं दिख नहीं रहा हूं.हूँ।</poem>