भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatKavita}}
<poem>
यह कैसा है महावृत महावृत्त
जो है अपरिमित
फिर भी -
आकाश को भी
अपने परों से ..नाप रही हैं है
हर मन के घोंसलों से ......उड़कर
एक नन्ही चिड़िया
</poem>