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एक नन्ही चिड़िया / किशोर कुमार खोरेन्द्र
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20:00, 24 मई 2010
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<poem>
यह कैसा है
महावृत
महावृत्त
जो है अपरिमित
फिर भी -
आकाश को भी
अपने परों से ..नाप रही
हैं
है
हर मन के घोंसलों से ......उड़कर
एक नन्ही चिड़िया
</poem>
अनिल जनविजय
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