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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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उपेक्षित हो क्षिति के दिन रात

जिसे इसको करना था, प्‍यार,

कि जिसका होने से मृदु अंश

इसे था उसपर कुछ अधिकार,


:::अहर्निश मेरा यह आश्‍चर्य

:::कहाँ से पाकर बल विश्‍वास,

:::बबूला मिट्टी का लघुकाय

:::उठाए कंधे पर आकाश!
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