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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} उपेक्षित हो क्षिति के दिन रा…
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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
उपेक्षित हो क्षिति के दिन रात
जिसे इसको करना था, प्यार,
कि जिसका होने से मृदु अंश
इसे था उसपर कुछ अधिकार,
:::अहर्निश मेरा यह आश्चर्य
:::कहाँ से पाकर बल विश्वास,
:::बबूला मिट्टी का लघुकाय
:::उठाए कंधे पर आकाश!
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
उपेक्षित हो क्षिति के दिन रात
जिसे इसको करना था, प्यार,
कि जिसका होने से मृदु अंश
इसे था उसपर कुछ अधिकार,
:::अहर्निश मेरा यह आश्चर्य
:::कहाँ से पाकर बल विश्वास,
:::बबूला मिट्टी का लघुकाय
:::उठाए कंधे पर आकाश!