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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
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<poem>
पलकें न झपकानी थीं कि गुफ़्तार अजब थी
आँखों के लिए साअत-ए-दीदार अजब थी
ख़ामोश थे लब सूरत-ए-इकरार अजब थी
क्या कहते सफाई में कि सरकार अजब थी
फिर जमने लगे देख मेरे पाँव ज़मीं पर
ग़ुरबत में तिरे शहर की दीवार अजब थी
इम्कान-ए-बहाराँ से भी दिल डरने लगा था
और बर्ग-ए-तमन्ना की भी कुछ धार अजब थी
</poem>
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|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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पलकें न झपकानी थीं कि गुफ़्तार अजब थी
आँखों के लिए साअत-ए-दीदार अजब थी
ख़ामोश थे लब सूरत-ए-इकरार अजब थी
क्या कहते सफाई में कि सरकार अजब थी
फिर जमने लगे देख मेरे पाँव ज़मीं पर
ग़ुरबत में तिरे शहर की दीवार अजब थी
इम्कान-ए-बहाराँ से भी दिल डरने लगा था
और बर्ग-ए-तमन्ना की भी कुछ धार अजब थी
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