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{{KKCatGhazal}}
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छोडिये जिक्र ज़िक्र उस जमाने ज़माने के,वो फ़साने हैं दिल दुखाने के |।
एक कोशिश है भूल जाने की,
सौ वजूहात वज़ूहात याद आने के|।
ऐसे जाना भी क्या यार जाना,
तोड़कर पुल गरीब खाने गरीबख़ाने के|।
रामजी मुझको और दुःख दे दो
काम आयेंगे आएँगे गम भुलाने के |।</poem>