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मन रसखान हुआ / विजय वाते

11 bytes added, 06:01, 11 जून 2010
<poem>
तुझ पे कुर्बान हुआ,
मन रस खान रसखान हुआ|
जाना जब नाम तेरा,
खुद अपना ज्ञान हुआ|
आकार आकर तीरे लैब पर,ये गीत अज़ान हुआ|
उल्लेख तेरा जिसमें,
वो शेर दीवान हुआ|
तुझको चाहा भर था,
कितना तूफान हुआ |</poem>
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