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‘रेप’ बड़की हुई, मगर, घर में / जहीर कुरैशी
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07:12, 11 जून 2010
<poem>
रेप बड़की हुई मगर घर में
घुस गया है अजीब डर घर
में
बूढ़े माँ-बाप ‘गाँव’ लगते हैं
झुक गया है पिता का स्वर घर में
सबके चूल्हे हैं,यार,
निट्टी
मिट्टी
के
व्यर्थ तू झाँकता है घर-घर में
</poem>
Ysjabp
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