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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
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<poem>
आँखों से मिरी कौन मिरे ख़्वाब ले गया
चश्म ए सदफ से गौहर ए नायाब ले गया
इस शहर से खुशजमाल को किसकी लगी है आह
किस दिलज़दा का गिरिया ए खूं नाब ले गया
वाँ शहर डूबते हैं इधर बहस कि उन्हें
खुम ले गया है या खुम ए मेहराब ले गया
गैरों की दुश्मनी ने न मारा मगर हमें
अपनों के इल्तिफात का ज़हराब ले गया
ए आँख अब तो ख़्वाब की दुनिया से लौट आ
मिज़गां तो खोल शहर शहर ए सैलाब ले गया
</poem>
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|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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आँखों से मिरी कौन मिरे ख़्वाब ले गया
चश्म ए सदफ से गौहर ए नायाब ले गया
इस शहर से खुशजमाल को किसकी लगी है आह
किस दिलज़दा का गिरिया ए खूं नाब ले गया
वाँ शहर डूबते हैं इधर बहस कि उन्हें
खुम ले गया है या खुम ए मेहराब ले गया
गैरों की दुश्मनी ने न मारा मगर हमें
अपनों के इल्तिफात का ज़हराब ले गया
ए आँख अब तो ख़्वाब की दुनिया से लौट आ
मिज़गां तो खोल शहर शहर ए सैलाब ले गया
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