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सो भी जा / विजय वाते

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रात के ढाई बजे हैं सो भी जा
लोग सारे सो गये हैं सो भी जा

है सुबह जल्दी जरूरी जागना
काम कितने ही पड़े हैं सो भी जा

लाभ हानि जय पराजय शुभ अशुभ
रोज के ये सिलसिले हैं सो भी जा

बेईमानी के विषय में सोच मत
होंठ सबके ही सिले हैं सो भी जा

कौन्क्या बोला तुझे ये भूल जा
लोग लुछ तो दिलजले हैं सो भी जा
</poem>