Changes

|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते
}}
{{KKCatGhazal}}
रात ये क्या रात है, ढलती नहीं, कटती नहीं|<br>
साथ अपनी चांदनी भी, रात भर चलती नहीं|<br><br>
जिंदगी तो खैर पैसो के बिना चलती नहीं|<br><br>
लोग कहते है हैं कि गम को गा-बजाकर कम करो,<br>
सोचता हूँ माँ बेचारी शेर तक कहती नहीं|