भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार=नईम
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
करतूतों जैसे ही सारे काम हो गयेगए
किष्किंधा में लगता -
अपने राम खो गयेगए ।
बालि :बाली और सुग्रीवों से कुछ -:कहा न जायेजाए,:न्याय मांगते माँगते -:शबरी, शम्बूकों के जायेजाए ।
करे धरे सब हवन, होम भी
हत्या और हराम हो गयेगए ।
:स्वप्नों सूझों की जड़ में ही -:दिग्गज मठ्ठा डाल रहे हैं,:और अस्मिता पर अपनी ही:कीचड़ लोग उछाल रहे हैंदेश -देश के क्षत्रप मिलकर -आज केन्द्र से बाम हो गयेगए ।
:देनदारियों का मत पूछो,:डेवढ़ी बैठेंगी आवक से:फिर भी पड़े हैं पीछे:राम हमारे, मृग शावक के
वर्तमान रिस रहा सिरे से -
गत, आगत बदनाम हो गयेगए ।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,142
edits