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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …
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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
फागुन में जब वे खतरनाक उतारों से
घास काट कर लाएंगी
तो गट्ठर में बंध आयेंगे
वे फूल भी.
भीटों में घास के बीच में ही छिपे होते हैं
उनके झाड़
वसन्त् के वे विनम्र कांटें भी
पसंद आते हैं मवेशियों को
फूलों की तो बात ही क्या कहना
बल्कि
जब चारे के बीच दिखती है नांद में
वह मसली हुई पीताभा
तब
खुशी से गोरूओं का नथुने फुंकारना
और कान फटफटाना तो देखो !
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|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
फागुन में जब वे खतरनाक उतारों से
घास काट कर लाएंगी
तो गट्ठर में बंध आयेंगे
वे फूल भी.
भीटों में घास के बीच में ही छिपे होते हैं
उनके झाड़
वसन्त् के वे विनम्र कांटें भी
पसंद आते हैं मवेशियों को
फूलों की तो बात ही क्या कहना
बल्कि
जब चारे के बीच दिखती है नांद में
वह मसली हुई पीताभा
तब
खुशी से गोरूओं का नथुने फुंकारना
और कान फटफटाना तो देखो !