514 bytes added,
09:50, 5 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
किरनों के
अदृश्य हाथ
उसे छूते हैं
धीरे-धीरे
एक रूप फिर कसमसाता है
उजास की आभा लिए
वह फिर आ रहा है
उदित भाल
</poem>