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{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
}}
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<poem>
किरनों के
अदृश्य हाथ
उसे छूते हैं
धीरे-धीरे
एक रूप फिर कसमसाता है
उजास की आभा लिए
वह फिर आ रहा है
उदित भाल
</poem>
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|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
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किरनों के
अदृश्य हाथ
उसे छूते हैं
धीरे-धीरे
एक रूप फिर कसमसाता है
उजास की आभा लिए
वह फिर आ रहा है
उदित भाल
</poem>