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ज़िंदगी / मनोज श्रीवास्तव

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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
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''' जिन्दगी '''

रोटी खाने आए
आवारा कुत्ते को
रोज़ कुछा क्षण के लिए
अपना मित्र बनाने की तरह

खिड़की से आई
हवा के झोंकों से,
हिलाते जालों से
दीवाल पर उभरते
छाया-बिम्बों को
अपना लक्ष्य बनाने की तरह

यह ज़िंदगी है

रोटी और कुत्ते के बीच
हवा और जाले के बीच
भूख का नाम
बिम्ब का नाम
ऊर्जा का नाम
ज़िंदगी है.