भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
आट-ठाट छाजन का, एकाकार कई हैं,
भिन्न कई हैं, अपनी-अपनी चाल गई हैं,
साज-बाज दिखलाती हुई नवीन बस्तिया~मबस्तियाँ,
नर-नारी की धाराएँ आनंदमयी हैं,
और कहाँ ये चुहल, यह लहर और मस्तियाँ,