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जाड़े की घन माला / त्रिलोचन

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आट-ठाट छाजन का, एकाकार कई हैं,
भिन्न कई हैं, अपनी-अपनी चाल गई हैं,
साज-बाज दिखलाती हुई नवीन बस्तिया~मबस्तियाँ,
नर-नारी की धाराएँ आनंदमयी हैं,
और कहाँ ये चुहल, यह लहर और मस्तियाँ,
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