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Kavita Kosh से
किताबों के पन्ने भी
रखती रही उनमें
तितलियों के प्पर पर भी
उकेरती रही नखों से
हाशियों में अपने लिए
लहुलुहान हथेलियों को
छापती रही कोरे काग़ज़ पर
दीवार परादमी की पीठ पर /धूप और बारिश पर
ज्यूँ की त्यूँ
ताकि आने वाली पीढ़ियों को