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जी ही जी में / जॉन एलिया

2 bytes added, 02:30, 19 जुलाई 2010
<poem>
जी ही जी में वो जल रही होगी
चन्दनी चान्दनी में टहल रहीं होगी  
चान्द ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी
सो गई होगी वो शफक अन्दाम