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14:23, 19 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह = कहाँ हैं वे शब्द / रमेश कौशिक
}}
<poem>
मेरा क्या है
गिरते-पड़ते
रोते-गाते, हँसते-चिल्लाते
काँटों में बिंधते
रास्ता बनाते
किसी तरह इस जंगल से
निकल जाऊँगा|
लेकिन उनका क्या होगा
जो मेरे बाद आएँगें
मेरे बनाए रास्ते पर
कैक्टस की औलादें
उनका रास्ता रोकने को
फिर उग आएँगी|
ठीक है
जो मैंने किया
उसे हर आने वाला दुहाराएगा
और किसी तरह इस जंगल के पार
वह भी निकल जाएगा|
</poem>