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Kavita Kosh से
किताबों के पन्ने भी
रखती रही उनमें
तितलियों के पर भी
उकेरती रही नखों से
हाशियों में अपने लिए
छापती रही कोरे काग़ज़ पर
दीवार पर /धूप और बारिश पर
ज्यूँ की का त्यूँ
ताकि आने वाली पीढ़ियों को
अँधेरे में इक चिराग़ मिले
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