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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}
<poem>
रात कल गहरी नींद में थी जब
एक ताज़ा सफ़ेद कैनवास पर
आतिशी लाल सुर्ख रंगों से
मैंने रोशन किया था इक सूरज
सुबह तक जल गया था वो कैनवास
राख भिखरी हुई थी कमरे में मेरे...!
</poem>
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|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}
<poem>
रात कल गहरी नींद में थी जब
एक ताज़ा सफ़ेद कैनवास पर
आतिशी लाल सुर्ख रंगों से
मैंने रोशन किया था इक सूरज
सुबह तक जल गया था वो कैनवास
राख भिखरी हुई थी कमरे में मेरे...!
</poem>