भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कभी अरमानों से
सोच कि "सीट" भी अपनी सीमा में
ही झुक पति पाती है
काश
मेरा जीवन होता
वो रास्तों में खाद्खादाता खङखङाता
रिक्शा !!
जिसमें बैठ कर हम दोनों