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मेरा मौसम / विजय कुमार पंत

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कभी अरमानों से
सोच कि "सीट" भी अपनी सीमा में
ही झुक पति पाती है
काश
मेरा जीवन होता
वो रास्तों में खाद्खादाता खङखङाता
रिक्शा !!
जिसमें बैठ कर हम दोनों
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