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Kavita Kosh से
मेरा घातक बलात्कार कर रहा है
फिर, जूठे पत्तल से -सा तिरस्कृत करदोबारा पछुआ हवाओं से कामोन्मत्त होने तक,वह चला जा रहा है अनवरतपार्कों, विहारों, उद्यानों में प्रेमयोगरतउदार-तन, उदार-मन मादाओं के साथ और समय को झांसा देते हुए अप्रासंगिक वर्तमान को खदेड़े गए अतीत के डस्टबिन में डाल रहा है,कई सौ सालों केबराबर की छलांग लगाने के लिएसारे अतिमानवीय हथकंडे अपना रहा है पर, मैं इन सतत यातनाओं से मरणासन्न लेती रहूँगी यहाँ खिन्न-मन,यादाश्त के घर्र-घर्र चलते रहने परकुछ मीठी पौराणिक यादों में खोने कीदमतोड़ कोशिश करती रहूँगी,आख़िरी सांस तक इस शहर के काले करतूतों से जूझती रहूँगी.