भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
::बिन बरसे काला बादल
::::युग हुए न लौटे घर हम::::हो गए छलावे मौसम::::नून छिड़कती जख़्मों पर::::सावनी सुरीली सरगम::::सोच हो गई मधुशाला::::चाहना रही गंगाजल
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,282
edits