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::बिन बरसे काला बादल
::::युग हुए न लौटे घर हम::::हो गए छलावे मौसम::::नून छिड़कती जख़्मों पर::::सावनी सुरीली सरगम::::सोच हो गई मधुशाला::::चाहना रही गंगाजल
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