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जी ही जी में / जॉन एलिया

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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
1.
जी ही जी में वो जल रही होगी
चान्दनी चाँदनी में टहल रहीं होगी
चान्द चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी
सो गई होगी वो शफक शफ़क़ अन्दामसब्ज़ किन्दीर किन्दील जल रही होगी
सुर्ख और सब्ज़ वादियो वादियों की तरफ
वो मेरे साथ चल रही होगी
चढ़्तेचढ़ते-चढ़्ते चढ़ते किसी पहाड़ी पर
अब तो करवट बदल रही होगी
नील को झील नाक तक पहने
सन्दली ज़िस्म जिस्म मल रही होगी
काहे2. गाहे-काहे ब्स गाहे बस अब तही हो क्या
तुम से मिल कर बहुत खुशी हो क्या
मुझ को अक्सर भुला चुकी हो क्या
याद है हैं अब भी अपने ख्वाब तुम्हे तुम्हें
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या
बस मुझे यू यूँ ही एक खयाल ख़याल आया
सोचती हो तो सोचती हो क्या
आखरी बार मिल रही हो क्या?
हाँ, है फज़ा यहाँ याँ की सोई-सोई सी है
तुम बहुत तेज़ रोशनी हो क्या
मेरे सब तंज़ बेअसर ही रहे
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या?
दिल में अब सोज़े-इंतज़ार नहीं
शम्मे उम्मीद बुझ गई हो क्या?
</poem>