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Kavita Kosh से
सांस-सांस भर पिया गया है
एक-एक क्षण जिया गया है
अभी चुभे
सीत्कारती
आवाज़ों को
रात-रात भर सिया गया है
एक-एक क्षण जिया गया है
खोल मौन के
मन के इतने बड़े नगर में
कोलाहल भर लिया गया है
एक-एक क्षण जिया गया है </poem>