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{{KKRachna
|रचनाकार= योगेन्द्र दत्त शर्मा
|संग्रह=ख़ुशबुओं के दंश / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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<poem>
::रेत की हथेली पर
::गीत नहीं बोएँगे !
ढहते हैं सपनों के
ताजमहल, ढह लेंगे
कुहरे को लिपटाकर
सूरज-से दह लेंगे
::पलकों पर मोती का
::भार नहीं ढोएँगे !
आदमक़द शीशों में
धुंधलाई तसवीरें
दरक-दरक जाती हैं
बिम्बों की प्राचीरें
::आकृतियाँ अपनी अब
::और नहीं खोएँगे !
आभासित होता जो
खड़ा हुआ गंगाजल
इसके भीतर कितनी
भरी हुई है दलदल
::इस गंदले पानी में
::शंख नहीं धोएँगे !
</poem>