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बेचैंनी / मुकेश मानस

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<poem>

कितनी ही बातें ऐसी हैं
जिन्हें भूलना बेहतर है
पर भुला नहीं पाता हूँ

सुलझ नहीं पाती है उलझन
और उलझती जाती है
जितना भी सुलझाता हूँ

जाने कैसी बेचैंनी है
जो भी कहना चाहता हूँ
कह नहीं पाता हूँ
2005
<poem>
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