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{{KKRachna
|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
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इब्तिदा-ऐ-इश्क इश्क़<ref>प्रेमारंभ</ref> है रोता है क्या
आगे आगे देखिये होता है क्या
ग़ैरते-युसूफ़ है ये निशान-वक़्त ऐ-इश्क हैं जाते नहींअजीज़दाग छाती के अबस धोता 'मीर' इस को रायेग़ाँ<ref>व्यर्थ</ref> खोता है क्या
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