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{{KKRachna
|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
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<poem>
इब्तिदा-ऐ-इश्क इश्क़<ref>प्रेमारंभ</ref> है रोता है क्या
आगे आगे देखिये होता है क्या
काफिले क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर हैयानी गाफिल गाफ़िल<ref>अनभिज्ञ</ref> हम चले सोता है क्या  सब्ज़<ref>हरी</ref> होती ही नहीं ये सरज़मीं तुख़्मे-ख़्वाहिश<ref>इच्छाओं के बीज</ref> दिल में तू बोता है क्या
सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं तुख्मनिशान-ऐ-ख्वाहिश दिल में तू बोता इश्क़ हैं जाते नहींदाग़ छाती के अबस<ref>बिन प्रयोजन</ref> धोता है क्या
ग़ैरते-युसूफ़ है ये निशान-वक़्त -इश्क हैं जाते नहींअजीज़दाग छाती के अबस धोता 'मीर' इस को रायेग़ाँ<ref>व्यर्थ</ref> खोता है क्या
गैरत-ऐ-युसूफ है ये वक़्त-ऐ-अजीज़
'मीर' इस को रायेगां खोता है क्या
''तुख्म= बीज''
</poem>
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