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थक गए हैं
नदी, सागर
थक गयी गई धरती
समय भी थक गया भरपूर
नहीं कोई गांवगाँव,कोई ठांवठाँव,कोई छांवछाँवथक गयी गई हैजिंदगी बेदांवज़िंदगी बेदाँव
और उस पर
धूप,गर्मी,शीत,वर्षा क्रूर
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