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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |संग्रह=सैरे-जहाँ / शहरयार }} {{KKCatKavita}} <poem> हुआ …
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हुआ ये क्या कि ख़मोशी भी गुनगुनाने लगी
गई रुतों की हर इक बात याद आने लगी

ज़मीने-दिल पे कई नूर के मिनारे थे
ख़याल आया किसी का तो धुंध छाने लगी

ख़बर ये जबसे पढ़ी है, ख़ुशी का हाल न पूछ
सियाह-रात!  तुझे रौशनी सताने लगी

दिलों में लोगों के हमदर्दियाँ हैं हमारे लिए
मैं आज ख़ुश हूँ कि मेहनत मेरी ठिकाने लगी

बुरा कहो कि भला समझो ये हक़ीक़त है
जो बात पहले रुलाती थी अब हँसाने लगी
</poem>