भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा
}}{{Template:KKAnthologyDiwali}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
बम फटा था ।
: सर्र-सर्र से: चक्करी चलती: फर्र-फर्र: फुलझड़ी फर्राटा । 
सूँ-सूँ करके
साँप जो निकला
ऐसे लगा, मानो
जादू चला था ।
: फटाक-फटाक: चली जो गोली: ऐसा भी : पिस्तौल बना था । 
ऐसी ग़ज़ब की
हुई दिवाली
किलकारी का
शोर मचा था ।
: हुर्रे-हुर्रे, का: शोर मचाकर: बच्चों का टोला: झूम रहा था । 
जगमग हो गई
दुनिया सारी