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09:10, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
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अनजान शहर बाटे, अनजान सफर बाटे
मजबूर मुसाफिर बा, चलहीं के डहर बाटे
हर मोड़ पे आके हम गुमराह भले भइनी
पर आस मरल नइखे, मंजिल प नजर बाटे
तब गैर रहे लूटत, अब आपने लूटत बा
एह देश में सदियन से, लूटे के लहर बाटे
मतलब के निकलते ही बर्ताव बदल जाता
फइलत बा फिजा में अब कइसन दो जहर बाटे
भाई के मुसीबत में, भाई ही सटत नइखे
एह खून के रिश्ता में, कइसन ई कसर बाटे
'भावुक' हो ई जिनिगी तऽ, पतझार के पतई हऽ
ई काल्ह रही कहँवाँ, केकरा ई खबर बाटे
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