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Kavita Kosh से
क्षमा करना
अवकाश ही नहीं मिला
ये दांत दाँत कब टूट गए तुम्हारे ?
और ये सफ़ेद बाल ?
आ बैठ, ग़ौर से देखूं देखूँ तुझे
कहीं इसी दौड़-भाग में
यह ज़िंदगी भाग न जाए ।