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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=किशोर कल्पनाकांत |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>औस तणा नैनाकिया मोती , पसरयोडा हा इतरी ताळ!पलक झपकाता गया कठीने , करूँ औस री ढूंढा-भाळ?
आभै तणी कूख सूं उपन्यो , सुरज-गीगलो करतो छैन!जाय चढ्यो पूरब री गोदी , नेमधेम री सैनूंसैन!बाड़ी-तणा फूल-पानका , चिल्कै-मुळकै बण'र बहार !
मै उगते सुरजी नै देख'र लुळ-लुळ नमन करूँ मनवार !
सुरजी रै तप सूं भापीज्यो , रीतो पड्यो दूब रो थाळ!पलक झपकाता गया कठीने , करूँ औस री ढूंढा-भाळ!
सुरजी परतख एक सांच है , कद जाणीजै उण नै झूठ !औस तणा मोती'ई साँचा , बात नहीं है आ परपूठ!औस आस तो है छिणगारी , पल मे परगट पल मे लोप !
हियो सिलावै जगत सजीलो , सोक्याँ मायं सांच री ओप !पण सगला पल एक सरीसा , ना रैवै थिर कोई काळ!औस तणा नैनाकिया मोती , पसरयोडा हा इतरी ताळ !पलक झपकाता गया कठीने , करूँ औस री ढूंढा-भाळ ?
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