भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
"[[दस दोहे (01-10) / चंद्रसिंह बिरकाली]]" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))
आतां देखै उंतवाली हिवडै़ हुयो हुळास।
सिर पर सूकी जावतां छूटी जीवण आस।। 10।।आस ।।10।।
तुम्हें द्रुतगति से आती देख ह्दय में हुलास हुआ, पर सिर पर से सूखी ही जाते समय जीवन की आशा छूट रही है।है ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,623
edits