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पतझड़ में शांत खड़े थे घर-बंगला औ' बाड़ी
अर्धरात्रि में मृत पड़े थे सब पेड़ औ' झाड़ी
पर रहा राह भटके बच्चे-सा कहीं चीख़ रहा था
दूर वन में, काँव-काँव..., एक कौआ अनाड़ी
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