भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
आज हर घर से जनाज़ा-सा उठा हो जैसे
मुस्कुराता हूँ पा-ए-ख़ातिरख़ातिर-ए-अहबाब- मगरदुःख तो चेहरे चेहरे की लकीरों पे सजा हो जैसे
अब अगर डूब गया भी तो मरूँगा न 'कमाल'
बहते पानी पे मेरा नाम लिखा हो जैसे
</poem>