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रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद'
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ज़ख्म है दिल का ताज़ा देखो
और कोई दरवाजा देखो

तीर निशाने पर बैठा है
ज़ालिम का अंदाजा देखो

आंसू ,आह, कसक, बेचैनी
इश्क का ये खामियाजा देखो

गर्दन देखो आईने की
अपने रुख का गाजा देखो

बिखरा बिखरा सा है 'बेखुद'
जिस जिस का शीराज़ा देखो </poem>