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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनीष मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मेरी बेटी जमा कर…
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{{KKRachna
|रचनाकार= मनीष मिश्र
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरी बेटी
जमा करती है आवाज़ें
और बनाती है
एक तुतलाता, लडख़ड़ाता-सा शब्द।
शब्द देर तक भटकता है
अर्थ की बेमानी तलाश में
और फिर बिखर जाता है
आवाज में।
</poem>
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|रचनाकार= मनीष मिश्र
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}}
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मेरी बेटी
जमा करती है आवाज़ें
और बनाती है
एक तुतलाता, लडख़ड़ाता-सा शब्द।
शब्द देर तक भटकता है
अर्थ की बेमानी तलाश में
और फिर बिखर जाता है
आवाज में।
</poem>