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Kavita Kosh से
बेलड़ियां विरछां मिळै प्रीतम राखे टेक।। 114।।
बिजलियां जलधरों से मिल रही है, आकाष आकाश और धरती मिल कर एकाकार हो गये है, वल्लरियां वृक्षों से मिल रही है - है प्रियतम, मेरी टेक भी रखना।
वूठी जोरां बादळी टूट्या टीबड़िया।
परवा में गैळीजिया लिट-लिट ठंडी धूड़।।118।।
बांडी, काले नाग, गोहिरे, सरलक और षंखचुड़ शंखचुड़ आदि विषैले जीव पूर्वीय पवन में विष से उन्मत्त हो ठण्डी धूल पर लोट-पोट हो रहे है।
टोळो सांभ्यो राईकां गायां लार गुवाळ।