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दस दोहे (111-120) / चंद्रसिंह बिरकाली
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11:12, 25 नवम्बर 2010
धोरा धुप राता हुआ न्हाय हरी वणाय।। 111।।
खूब भरे हुए ताल किरणों के
प्रकाष
प्रकाश
में उद्भासित हो रहे है। टीले धुल कर लालिमायुक्त हो गये है। और वनराजि स्नान कर हरी-भरी हो उठी है।
भूरा-भूरा धोरिया भरिया मामोल्यां।
आशिष पुरोहित
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