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विश्वबंधुता बढ़ती जाए, ऐसी हो हर रीत / बाबा बैद्यनाथ झा

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विश्वबंधुता बढ़ती जाए, ऐसी हो हर रीत।
प्रेम स्नेह सद्भाव बढ़ाने, गाएँ अनुपम गीत।।

वैमनस्य का आज परस्पर, बढ़ती जाती व्याधि,
ऐसे में आवश्यक लगता, बढे़ आपसी प्रीत।

भाई से भाई भिड़ जाता, करने लगता युद्ध,
नहीं परस्पर मेल रहे जब, दोनों हैं भयभीत।

देख पड़ोसी को संकट में, आप बढ़ाएँ हाथ,
सुख-दुख में जो साथ निभाता, लेता दिल वह जीत।

प्यार किसी से अगर करें हम, दें जीवन भर साथ,
सम्बोधन में सदा कहें हम, उसको- हे मनमीत।

थोड़ी सी कटुता आ जाना, है स्वाभाविक बात,
क्षमा माँग कर उसे मना लें, भूलें आप अतीत।

कविगण का दायित्व बड़ा है, इसे निभाएँ आप,
भावों के सागर से निकले, स्नेहयुक्त नवनीत।